गुरुमुख को भगवान के दरबार में सम्मान प्राप्त होता है।
गुरुमुख भय का नाश करने वाले परमेश्वर को प्राप्त करता है।
गुरमुख अच्छे कर्म करता है और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है।
हे नानक, गुरुमुख प्रभु के संघ में एक हो जाता है। ||३६||
गुरुमुख सिमरितियों, शास्त्रों और वेदों को समझता है।
गुरमुख प्रत्येक हृदय का रहस्य जानता है।
गुरुमुख घृणा और ईर्ष्या को समाप्त करता है।
गुरमुख सारा हिसाब मिटा देता है।
गुरुमुख भगवान के नाम के प्रति प्रेम से ओतप्रोत होता है।
हे नानक, गुरमुख अपने प्रभु और स्वामी को पहचान लेता है। ||३७||
गुरु के बिना मनुष्य भटकता रहता है, पुनर्जन्म में आता-जाता रहता है।
गुरु के बिना मनुष्य का कार्य व्यर्थ है।
गुरु के बिना मन पूर्णतः अस्थिर रहता है।
गुरु के बिना मनुष्य असंतुष्ट रहता है और विष खाता है।
गुरु के बिना मनुष्य माया के विषैले सर्प द्वारा डंस लिया जाता है और मर जाता है।
हे नानक, गुरु बिना सब खो गया ||३८||
जो गुरु से मिलता है, वह पार हो जाता है।
उसके पाप मिट जाते हैं और पुण्य के द्वारा वह मुक्ति पाता है।
गुरु के शब्द का चिन्तन करने से मोक्ष की परम शांति प्राप्त होती है।
गुरमुख कभी पराजित नहीं होता।